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कविता

हमारी बातें

प्रांजल धर


(उन प्रेमी युगलों के लिए जो स्वीकार नहीं कर पाते कि गहरे प्रेम की सबसे बड़ी अभिव्यक्तियाँ मौन में समायी हैं, बातों में नहीं...)
 
आज सोचा है
कि तुम आओगी
बैठेंगे
बातें नहीं करेंगे,
अच्छा ठीक है, बातें ही करेंगे
ढेर सारी बातें
बहुत प्यारी बातें
कल की बातें, आज की बातें
तुम्हारी बातें, हमारी बातें
दमदार बातें, बेचारी बातें
और आज तक जो कर न सके
वो सारी बातें!
 
फिर उलझ जाएँगे किसी ऐसी बात में
जिस बात पर तुम्हारी बातें सुनना
मुझे बहुत अच्छा लगता है
जिस बात को सुनकर
सब कुछ बड़ा सच्चा लगता है
पर वो बात किसी को बताएँगे नहीं
‘ठीक है?’
‘...ठीक है।’
एक बात दो बात दस बात सौ बात
कुछ बाते अतीत की, कुछ वर्तमान की
कुछ बातें मेरे समर्पण की
और कुछ तुम्हारे अभिमान की...
पर कोई भी बात हो
‘बताएँगे नहीं किसी से’
- नहीं बताएँगे अपनी बात -
हम सोचेंगे कि ये तो ‘हमारी’ बात है
‘हमारा’ मन
चाहे बात बताए, या न बताए।
चाहे बात कहे, या सबसे छिपाए।
आखिर
‘हमारी’ बात है!
 
फिर बात ही बात में
कोई ऐसी बात कहोगी
कि मैं सुलगूँगा और तुम हँसोगी
...फिर मेरा ‘कमजोर’ प्यार
और तुम्हारे ‘जीवन का बीमा’
एल.आई.सी.
(लव इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन)
...फिर एल.आई.सी. की किश्तें...
उन किश्तों की बातें
‘तीन किश्तें तुमने दीं और दो मैंने’
‘...नहीं, नहीं...’
‘कुछ भूल रही हूँ, दो किश्तें तुमने...’
और सारी बातें घूम-फिरकर
उसी एक बात पर आ गईं
हम फिर उसी मोड़ पर आ गए
जहाँ से
लोग बिछड़ते हैं उम्र भर के लिए
और फिर मैं हो जाऊँगा
निर्जन
अकेला
खंडहर
सिमटकर, ढहकर
बन जाऊँगा भूचाल का एक...
उजड़ा घर
जब यही नियति है
जब यही होना है
तब आज क्या कमी
आज क्या रोना है
जबकि आज भी निर्जन हूँ
आज भी अकेला हूँ!
 
अब नहीं सोचूँगा
कि तुम आओगी
और करेंगे ढेर सारी बातें।
अभी ले जाओ अपनी बातें
छोड़ दो ‘हमारी’ बातों को!
यही ठीक है।
तुम्हारी बातें तुम्हारी हैं
मेरी बातें मेरी
फिर कैसी ‘हमारी’ बातें हैं?
 

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